Tuesday 14 April 2015

KAFAN

 कफ़न


कफ़न जो हमारी ज़िंदगी की एक सच्चाई है जिसको हम अपनी ज़िंदगी से कभी जुदा नहीं कर सकते हैं इस दुनिया में तो हमारी ज़िंदगी महज़ चाँद लम्हों की है बाद में हम सबको इस दुनिया से रुखसत हो कर कफ़न के आगोश में सो जाना है 
जिस  तरह  खानदान  वाले किसी बच्चे की पैदाइश पर मुख्तलिफ तरीकों से खुशियां मनाते और महफ़िल सजाते हैं इसी तरह उस शख्सः की जुदाई के वक़्त  खानदानवाले मातम मानते हैं ये तमाम तरीके इंसानी मुआशरे पर मुन्हसिर करती है और बाद में जुदाई   के वक़्त  उसे  जलाकर या जमीदोज हर देती है
जब ये तमाम रस्मो रिवाज़ अदा किये जाते हैं तो उस शख्श को ले जाते वक़्त सफ़ेद कपडे पहना कर मंज़िले मक़सूद की तरफ रवाना होते हैं  


अजीब बात है ये वही कपडा है जिसे ज़िंदगी में जेबतन करता था तो उसे लिबास कहा जाता था लेकिन जब रूह निकलने के बाद  पहन रहा है तो उसे कफ़न कहा जाता है ये वो लिबास है जो खरीदता है वो पहनता नहीं और जो पहनता है वो खरीदता नहीं I 
ये एक एसा लफ्ज़ है जो हमें जाते जाते मुख्तलिफ सबक सीखा जाता  है 

" हम दुनिया की मोहब्बत में  ऐसे दीवाने हो गए अपने पराये सब बेगाने हो गए ज़िंदगी की हक़ीक़त जाना नहीं और पहन कर कफ़न हमेशा के लिए सो गए"