कफ़न
कफ़न जो हमारी ज़िंदगी की एक सच्चाई है जिसको हम अपनी ज़िंदगी से कभी जुदा नहीं कर सकते हैं इस दुनिया में तो हमारी ज़िंदगी महज़ चाँद लम्हों की है बाद में हम सबको इस दुनिया से रुखसत हो कर कफ़न के आगोश में सो जाना है I
जिस तरह खानदान वाले किसी बच्चे की पैदाइश पर मुख्तलिफ तरीकों से खुशियां मनाते और महफ़िल सजाते हैं इसी तरह उस शख्सः की जुदाई के वक़्त खानदानवाले मातम मानते हैं ये तमाम तरीके इंसानी मुआशरे पर मुन्हसिर करती है और बाद में जुदाई के वक़्त उसे जलाकर या जमीदोज हर देती है
जब ये तमाम रस्मो रिवाज़ अदा किये जाते हैं तो उस शख्श को ले जाते वक़्त सफ़ेद कपडे पहना कर मंज़िले मक़सूद की तरफ रवाना होते हैं I
अजीब बात है ये वही कपडा है जिसे ज़िंदगी में जेबतन करता था तो उसे लिबास कहा जाता था लेकिन जब रूह निकलने के बाद पहन रहा है तो उसे कफ़न कहा जाता है ये वो लिबास है जो खरीदता है वो पहनता नहीं और जो पहनता है वो खरीदता नहीं I
ये एक एसा लफ्ज़ है जो हमें जाते जाते मुख्तलिफ सबक सीखा जाता है
" हम दुनिया की मोहब्बत में ऐसे दीवाने हो गए अपने पराये सब बेगाने हो गए ज़िंदगी की हक़ीक़त जाना नहीं और पहन कर कफ़न हमेशा के लिए सो गए"
कफ़न जो हमारी ज़िंदगी की एक सच्चाई है जिसको हम अपनी ज़िंदगी से कभी जुदा नहीं कर सकते हैं इस दुनिया में तो हमारी ज़िंदगी महज़ चाँद लम्हों की है बाद में हम सबको इस दुनिया से रुखसत हो कर कफ़न के आगोश में सो जाना है I
जिस तरह खानदान वाले किसी बच्चे की पैदाइश पर मुख्तलिफ तरीकों से खुशियां मनाते और महफ़िल सजाते हैं इसी तरह उस शख्सः की जुदाई के वक़्त खानदानवाले मातम मानते हैं ये तमाम तरीके इंसानी मुआशरे पर मुन्हसिर करती है और बाद में जुदाई के वक़्त उसे जलाकर या जमीदोज हर देती है
जब ये तमाम रस्मो रिवाज़ अदा किये जाते हैं तो उस शख्श को ले जाते वक़्त सफ़ेद कपडे पहना कर मंज़िले मक़सूद की तरफ रवाना होते हैं I
अजीब बात है ये वही कपडा है जिसे ज़िंदगी में जेबतन करता था तो उसे लिबास कहा जाता था लेकिन जब रूह निकलने के बाद पहन रहा है तो उसे कफ़न कहा जाता है ये वो लिबास है जो खरीदता है वो पहनता नहीं और जो पहनता है वो खरीदता नहीं I
ये एक एसा लफ्ज़ है जो हमें जाते जाते मुख्तलिफ सबक सीखा जाता है
" हम दुनिया की मोहब्बत में ऐसे दीवाने हो गए अपने पराये सब बेगाने हो गए ज़िंदगी की हक़ीक़त जाना नहीं और पहन कर कफ़न हमेशा के लिए सो गए"